अहिल्याबाई होल्कर का जन्म एवं परिचय : अहिल्याबाई होल्कर का जन्म वर्ष 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव (जामखेड, अहमदनगर) में हुआ था। वह एक सामान्य से किसान की पुत्री थी। उनके पिता मान्कोजी शिन्दे एक सामान्य किसान थे। अपने माता पिता की अहिल्याबाई इकलौती पुत्री थी। अहिल्याबाई होल्कर प्रतिदिन शिवजी के मंदिर पूजन आदि करने आती थी। साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं। महज 19 वर्ष की उम्र में ही वे विधवा भी हो गई थीं। अहिल्याबाई ने एक बेटे को साल 1745 में जन्म दिया था, जिसके तीन वर्ष के उपरांत अहिल्याबाई के घर एक बेटी ने जन्म लिया था। रानी के बेटे का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई था। 29 वर्ष की आयु में पति का देहांत हो गया। सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे। अहिल्याबाई होल्कर के जीवन से एक महान साया उठ गया।
शासन की बागडोर संभालनी पड़ी। कालांतर में देखते ही देखते पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी माँ को अकेला ही छोड़ चल बसे परिणामतः ‘माँ’ अपने जीवन से हताश हो गई, परन्तु प्रजा हित में उन्होंने स्वयं को संभाला और सफल दायित्वपूर्ण राज-संचालन करती हुई 13 अगस्त, 1795 को नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखाकर सदैव के लिए महानिदा में सो गईं।
राजमाता की उपाधि : होल्कर वंश के संस्थापक मल्हार राव होल्कर थे, उनका शासन मालवा से लेकर पंजाब तक था। मल्हार राव होलकर का निधन 1766 में हुआ था। मालवा इलाके के वे पहले मराठा सूबेदार हुए। अहिल्याबाई मालवा राज्य की होलकर रानी बनी थी। अहिल्या को लोगों के द्वारा सम्मान से राजमाता भी कहकर पुकारा जाता था।
सामाजिक कार्य : अहिल्या के दिल में अपनी प्रजा के लिए काफी प्यार और दया थी। वे जब भी किसी को मुसीबत या तकलीफ में देखती थीं तो उसे हम करने के लिए आगे कदम बढ़ाती थीं। इसलिए ही लोग भी उन्हें काफी सम्मान और प्यार देते थे।अहिल्याबाई की बदौलत ही आज इंदौर की पहचान भारत के समृद्ध एवं विकसित शहरों में होती है। उन्होंने अपना ध्यान विभिन्न परोपकारी गतिविधियों की ओर भी लगाया, जिनमें, उत्तर में मंदिरों, घाटों, कुओं, तालाबों और विश्राम गृहों के निर्माण से लेकर दक्षिण में तीर्थ स्थलों तक का निर्माण शामिल था। उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान था, 1780 में, प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर की मरम्मत और उसका नवीनीकरण कराना।
महिला शिक्षा, सुरक्षा एवं उत्तराधिकारी : उन्होंने समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति पर भी खासा काम किया और उनके लिए उस वक्त बनाए गए कानून में बदलाव भी किया था। दरअसल, अहिल्याबाई के मराठा प्रांत का शासन संभालने से पहले यह कानून था कि, अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसका पुत्र न हो, तो उसकी पूरी संपत्ति सरकारी खजाना या फिर राजकोष में जमा कर दी जाती थी, लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून को बदलकर विधवा महिला को अपनी पति की संपत्ति लेने का हकदार बनाया। इसके अलावा उन्होंने महिला शिक्षा पर भी खासा जोर दिया। अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलने के बाद जिस तरह महारानी अहिल्याबाई ने अपनी अदम्य नारी शक्ति का इस्तेमाल किया था, वो काफी प्रशंसनीय है। अहिल्याबाई कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
अहिल्योत्सव : अहिल्याबाई होलकर जन्म से ही काफी चंचल स्वभाव एवं कई कौशल अपने अंदर समेटे हुए थीं। अहिल्याबाई होलकर को लोग देवी के रूप में मानते थे। देवी अहिल्याबाई के राज्य में काफी गड़बड़ मची हुई थी उस परिस्थिति में राज्य को ना केवल संभाला बल्कि कई नए आयाम खड़े किए उनके सम्मान और उनकी याद में ही मध्य प्रदेश के इन्दौर में हर साल भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव का आयोजन किया जाता है।अहिल्याबाई होलकर का नाम समूचे भारतवर्ष में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्हें लेकर कई पुस्तकों में भी लिखा गया है। अहिल्याबाई होल्कर ने देश के कई हिस्सों में काफी काम किए, जिसके चलते भारत सरकार के द्वारा कई जगहों पर रानी की प्रतिमा भी लगवाई गई है। उनके नाम पर कई योजनाएं भी हैं।
मृत्यु : अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु 13 अगस्त सन 1795 ईसवी को इंदौर राज्य में ही हुई था। अहिल्याबाई होलकर द्वारा किए गए महान कामों के लिए उनके सम्मान में भारत सरकार की तरफ से 25 अगस्त साल 1996 में एक डाक टिकट जारी कर दिया गया।
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